Sunday, 13 June 2021

Sahaja Yoga Miracle - Paulina survives a massive car accident

 कार के जलने के बाद श्रीमाताजी का फोटो और मैं ही बच पाये थे .....

(पॉलीना रोजेन्सटीन, ब्लिस एंड माइरेकल ग्रुप से साभार) 


अभी हाल ही में एक धुंधले से शुक्रवार के दिन मैं एक किराये की कार देने वाले ऑफिस में अपनी किराये की कार लेने पहुँची। काउंटर के पीछे खड़ी एक महिला ने मुझे फोर्ड रेनिगेड कार की चाबी दी जो दूसरी खड़ी गाड़ियों से काफी कम दूरी तक चली थी। मुझे 550 किमी0 की दूरी तय करनी थी। इस गाड़ी का मीटर मात्र 2800 किमी0 की तय की गई दूरी ही बता रहा था। मुझे ये कार बहुत पसंद आई। मैं कार लेकर जल्दी से घर की ओर भागी ताकि मैं अपना कुछ जरूरी सामान, अपने पति का सूटकेस और कुछ और आवश्यक सामान वगैरह साथ में ले सकूँ। कार में रेडियो पर NPR और फोन पर WAZE GPS लगाकर मैंने उसके शीशे आदि एडजस्ट किये। मैं चार्लेसटन जाने के लिये अब एकदम तैयार थी। GPS ने मुझे 78 W का मार्ग बताया और किसी बहुत ही आज्ञाकारी बच्चे की तरह से मैंने GPS के हर एक निर्देश को ठीक से माना। 


मैं हाइवे के तीन लेन वाले रास्तों में से बीच वाले रास्ते पर थी और अभी मैं न्यूयॉर्क शहर के बाहर 30-40 मिनट की दूरी भी तय नहीं कर पाई थी कि अचानक से मैंने इंजन की तेज आवाज सुनी। चूँकि मैं किसी अंडरपास से गुजर रही थी और मेरे दोनों ओर ट्रक बहुत ही तेजी से गुजर रहे थे तो मैंने सोचा शायद ये मेरे पास से गुजरने वाले किसी ट्रक की गड़गड़ाहट थी। लेकिन मुझे ये जानने में कुछ मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगा कि ये शोर तो मेरी ही कार से आ रहा था। पहले तो मैंने सोचा कि मैं किसी अगले एक्जिट पर ही उतर जाँऊ, लेकिन तुरंत ही मैंने अपना इरादा बदल दिया और मैंने कार को हाइवे पर ही एक ओर रोक दिया। मैंने आस-पास से गुजरते हुये ट्रकों की बिल्कुल भी चिंता न करते हुये किसी तरह से अपनी कार को रोक दिया कि अचानक मेरे चेहरे के पास से तेज आग की लपटे निकलने लगीं जो परमात्मा की कृपा से विंडस्क्रीन के दूसरी ओर थीं।

 

मैंने तुरंत अपना हैंडबैग और सेल फोन उठाया और बाहर निकल गई। आपके चारों ओर जो हो रहा है उसके बारे में आपकी चेतना आपके आउट ऑफ बॉडी एक्सपीरियंस की तरह से होती है और आप इसे अनासक्त भाव से देखते रहते हैं .... साक्षी भाव में। आपके आस-पास जो भी हो रहा है, उसके बारे में आप एकदम जागरूक होते हैं। मेरे लिये चमत्कारी ढंग से जिस प्रकार से मदद मिली वो बहुत ही बड़ी बात थी। 


आग बुझाने वाली गाड़ी ने तुरंत आग को बुझाया। कार की बॉडी बुरी तरह से जल चुकी थी और केवल उसका मेटल का बना बाहरी हिस्सा ही बचा था। न जाने क्यों पर मुझे कार की ओर जाने की तीव्र इच्छा हुई लेकिन पुलिस वाले मुझे कार के पास भी नहीं जाने दे रहे थे। फायरमैन को बुरा भला कहने के बाद मुझे कार के बचे हुये अवशेषों को देखने की परमिशन दे दी गई, लेकिन वो भी प्रोफेशनल्स की मौजूदगी में और काफी दूर से।


कार में मेटल और राख के अलावा कुछ भी बाकी नहीं था। मैंने कार के चारों ओर जाकर देखा। वैसे मुझे कार से काफी दूरी पर रहने को कहा गया था। जब मैं कार की अगली खिड़की पर पहुँची तो मुझे लगा कि मुझे जली हुई कार के अंदर से कोई चीज झाँकती हुई दिखाई पड़ रही है। ये उस चीज के किनारे वाला सफेद भाग था जो सीट पर चमक रहा था(जो श्रीमाताजी का फोटो था)। मैं झुकी और मैंने तुरंत राख में से श्रीमाताजी के फोटो को बाहर निकाल लिया जिसका फ्रेम थोड़ा सा जल चुका था लेकिन फोटो में माँ की मुस्कुराहट जस की तस थी। फोटो को भी कुछ ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था। इस भयंकर कार दुर्घटना के बाद जो बाकी रह गया था वो था श्रीमाताजी का ये पावन फोटो और मैं।

 



 Paulina experiences a miracle 

On a recent grey Friday morning, I came to a rental car office to pick up my rental car. The young woman behind the counter gave me Ford Renegade, because it had fewer miles than the other available vehicle and I had 550 miles to go.

 The Renegade had just a bit over 28,000 miles on the clock. I loved the car, promptly dashed home to pick up my luggage, my husband’s suitcase and some other bits and bobs that I thought would be needed. With NPR on the radio, WAZE GPS on the phone and mirrors fully adjusted, I was ready to whistle all the way to Charleston, WV. The GPS put me on i78W and like an obedient child I followed every instruction to the t. I was in the middle lane of the three lane express side of the highway, no more than 30-40 minutes outside of the city of New York  when I heard an engine noise. With trucks zooming at 75 mph all around me, going under an underpass, I could only assume that it was a rumble of a passing truck. 

It took me no more than a few minutes to realize that the noise came from my car! Initial thought of getting off at the next exit was inexplicably replaced by a need to get of the highway immediately. Cutting across the other lanes, without giving any thought to surrounding truck traffic, I barely managed to edge to the shoulder when flames exploded in front of my face, thankfully on the other side of the windscreen.  

 I grabbed my handbag and cell phone and got out!

The hyperawareness of one’s surroundings is a bit like an out-of-body experience, or, more precisely, of a totally detached witness, at the same time being fully aware of the surroundings and, most importantly the source of my miraculous help.

After the firemen put out the flames, there was only a burned out metal carcass that remained. I had an unexplained urge to get to the car, but the policeman would not let me near. After badgering the firemen, I was allowed to see the remains, but only in the presence of the professionals and not too close.

There was nothing left the car but burnt metal and ash. I walked around, starting from the back and going clockwise. I was kept several feet away from the car, but when I got to the front window on the passengers’ side, I though I saw something peeking from the black char. It was a white corner edge gleaming on the seat. I lunged, grabbed the edge and pulled Shri Mataji’s photo out of ashes. The frame was slightly burned, but the smile was unmistakably there and the photo largely undamaged!

The only things that survived this disastrous event were Shri Mataji’s photo and me!

Paulina Rosenstein.

Saturday, 12 June 2021

Dinesh Pandey, AMC - Miraculous escape from near death experience!

 और माँ की कृपा से टला हादसा


जय श्री माताजी,


मैं दिनेश पाण्डेय आर्मी मेडिकल कोर में सीनियर नर्सिंग असिस्टेंट के पद पर मणिपुर राज्य की दुर्गम पहाड़ी एवं फील्ड एरिया में तैनात हूँ, जहाँ कि जिन्दगी कब मौत बन जाय कुछ कहा नहीं जा सकता। एक दिन ऐसी घटना घटी कि हमारी बटालियन का मुकाबला कुछ आतंकवादियों से हो गया था, जिसमें एक जवान बुरी तरह से घायल हो गया था। कमान अधिकारी महोदय ने गाड़ी भेजकर मुझे घटनास्थल पर ही बुलवाया, ड्राइवर मेरे पास आकर जल्दी चलो आपके लिए गाड़ी खड़ी है। मैं अपना प्राथमिक चिकित्सा बैग लेकर भागा। कुछ दूर चलने के बाद मैं जैसे ही सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था मेरा पैर फिसल कर गड्ढे में चला गया और पीछे से ड्राइवर भी मेरे ऊपर गिर गया लेकिन जल्दी से निकल कर गाड़ी में जा बैठा। हाथ एवं पैर में मामूली चोट आई थी। घटनास्थल पर पहुँचकर देखा जवान खून से लथ-पथ पड़ा है। मैंने तुरंत उठाया इलाज करने लगा। तब तक अगल-बगल रात के अंधेरे में देखा तो पूरी बटालियन के जवान अपनी पोजीशन लिए हुए है, जबकि सैकड़ों की संख्या में यूजी (अंडर ग्राउंड आतंकी) हमला की मुद्रा में घेरे हुए हैं। 


मैंने स्थिति को भांपते हुए माँ निर्मला आदिशक्ति से प्रार्थना किया कि हे माँ, शांति प्रदान करे और हमारी तथा पूरी बटालियन के जवानों की रक्षा करें। थोड़ी देर पश्चात किस परिस्थिति में मैं उस घायल जवान को लेकर गाड़ी तक पहुँचाया और वह जवान तथा सभी सैनिक सुरक्षित बच गए। इस बात से सभी आश्चर्यचकित हैं तथा जब मैं सुबह उस गड्ढे को देखा तो मेरी सांस रुक गई कि वह गड्ढा इतना गहरा एवं खतरनाक था कि अगर माँ कि करुणा भरी कृपा नहीं होती तो हम ड्राइवर के साथ बड़ी दु:खद घटना घट सकती थी। 


आज मैं उसी जगत जननी जगदम्बा, आदिशक्ति माता निर्मला की पावन कृपा से इतनी भयावह स्थिति से बचकर अपनी बात बता रहा हूँ कि वह सीन सोचकर  खड़े हो जाते है।


दिनेश पाण्डेय, झांसी (उ.प्र.)



Tuesday, 8 June 2021

Pollen grains of lotus fell from the towel that was used to wipe Shri Mataji's feet

 उस तौलिये पर भी कमल के फूल के परागकण झर रहे थे ......

(Devarshi Abalain, सहजयोगा फ्रैंड्स एंड फैमिली से साभार)


कबैला में 1991 में नवरात्रि सेमिनार से पहले एक चमत्कार घटा। हमने सुना कि कोई महिला श्रीमाताजी के पैरों में मालिश कर रही थी और उसने माँ के पैर पोंछने के लिये जिस तौलिये का प्रयोग किया उस पर एक पीले रंग का पाउडर निकल कर आ गया जिसमें से फूलों की बेहद तेज खुशबू आ रही थी। शाम को हम सबको श्रीमाताजी के कक्ष में बुलाया गया और माँ ने हम सबको उस चमत्कार का अर्थ समझाया।



माँ ने कहा कि एक बार नारद मुनि श्रीकृष्ण के पास आये और उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा कि क्यों भगवान श्रीकृष्ण को सभी गोपियों में श्रीराधा जी ही सबसे प्रिय हैं। श्रीकृष्ण ने कहा कि चलिये इस बात को जानने के लिये गोपियों की परीक्षा ले ली जाय। आप जाकर सभी गोपियों से कहें कि श्रीकृष्ण बीमार हैं और वे तभी ठीक हो पायेंगे जब वे दवा के रूप में आपके चरणों की धूल खायेंगे। नारद मुनि ने यही बात गोपियों से जाकर कह दी। वे सब ये सुन कर अवाक रह गईं। उन्होंने नारद जी से कहा कि आपने हमसे ऐसी बात कहने का साहस किस प्रकार से किया? ये तो सरासर श्रीकृष्ण का अपमान करना है। क्या आप चाहते हैं कि ऐसा करके हमारे पुण्यों का क्षय हो जाय? गोपियों का उत्तर सुनने के बाद नारद मुनि राधा जी के पास गये और उनसे भी वही बात कही। 


राधा जी ने सुन कर एक क्षण की भी देरी नहीं लगाई और कहा कि हाँ .... हाँ क्यों नहीं आप श्रीकृष्ण के लिये मेरे पैरों की धूल अवश्य ले जाइये। नारद जी ने राधा जी के चरणों की धूल ली और श्रीकृष्ण के पास चले आये। नारद मुनि सोच में पड़ गये कि किस प्रकार से राधा जी ने श्रीकृष्ण के लिये अपने पैरों की धूल भेज दी? उनके मन की बात समझ कर श्रीकृष्ण ने नारद मुनि को दिव्य दृष्टि से अपने हृदय में देखने को कहा। 


नारद जी ने देखा कि श्रीकृष्ण के हृदय में एक कमल का फूल है और उस कमल पर श्रीराधा जी खड़ी हैं। उनके चरणों के स्पर्श से कमल के फूल का पराग झर-झर करके गिर रहा था। श्रीराधा जी के चरणों की धूल और कुछ नहीं बल्कि यही पराग था। 


उस तौलिये पर भी इसी तरह के पराग के कण झर रहे थे। कबैला में इस तौलिये को लिविंग रूम में रखा गया था और हम लोग उससे उत्सर्जित होने वाले चैतन्य का अनुभव भली-भाँति कर पा रहे थे।