उस तौलिये पर भी कमल के फूल के परागकण झर रहे थे ......
(Devarshi Abalain, सहजयोगा फ्रैंड्स एंड फैमिली से साभार)
कबैला में 1991 में नवरात्रि सेमिनार से पहले एक चमत्कार घटा। हमने सुना कि कोई महिला श्रीमाताजी के पैरों में मालिश कर रही थी और उसने माँ के पैर पोंछने के लिये जिस तौलिये का प्रयोग किया उस पर एक पीले रंग का पाउडर निकल कर आ गया जिसमें से फूलों की बेहद तेज खुशबू आ रही थी। शाम को हम सबको श्रीमाताजी के कक्ष में बुलाया गया और माँ ने हम सबको उस चमत्कार का अर्थ समझाया।
माँ ने कहा कि एक बार नारद मुनि श्रीकृष्ण के पास आये और उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा कि क्यों भगवान श्रीकृष्ण को सभी गोपियों में श्रीराधा जी ही सबसे प्रिय हैं। श्रीकृष्ण ने कहा कि चलिये इस बात को जानने के लिये गोपियों की परीक्षा ले ली जाय। आप जाकर सभी गोपियों से कहें कि श्रीकृष्ण बीमार हैं और वे तभी ठीक हो पायेंगे जब वे दवा के रूप में आपके चरणों की धूल खायेंगे। नारद मुनि ने यही बात गोपियों से जाकर कह दी। वे सब ये सुन कर अवाक रह गईं। उन्होंने नारद जी से कहा कि आपने हमसे ऐसी बात कहने का साहस किस प्रकार से किया? ये तो सरासर श्रीकृष्ण का अपमान करना है। क्या आप चाहते हैं कि ऐसा करके हमारे पुण्यों का क्षय हो जाय? गोपियों का उत्तर सुनने के बाद नारद मुनि राधा जी के पास गये और उनसे भी वही बात कही।
राधा जी ने सुन कर एक क्षण की भी देरी नहीं लगाई और कहा कि हाँ .... हाँ क्यों नहीं आप श्रीकृष्ण के लिये मेरे पैरों की धूल अवश्य ले जाइये। नारद जी ने राधा जी के चरणों की धूल ली और श्रीकृष्ण के पास चले आये। नारद मुनि सोच में पड़ गये कि किस प्रकार से राधा जी ने श्रीकृष्ण के लिये अपने पैरों की धूल भेज दी? उनके मन की बात समझ कर श्रीकृष्ण ने नारद मुनि को दिव्य दृष्टि से अपने हृदय में देखने को कहा।
नारद जी ने देखा कि श्रीकृष्ण के हृदय में एक कमल का फूल है और उस कमल पर श्रीराधा जी खड़ी हैं। उनके चरणों के स्पर्श से कमल के फूल का पराग झर-झर करके गिर रहा था। श्रीराधा जी के चरणों की धूल और कुछ नहीं बल्कि यही पराग था।
उस तौलिये पर भी इसी तरह के पराग के कण झर रहे थे। कबैला में इस तौलिये को लिविंग रूम में रखा गया था और हम लोग उससे उत्सर्जित होने वाले चैतन्य का अनुभव भली-भाँति कर पा रहे थे।
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